Daesh News

बंद कमरे में ही क्यों होती है खरना की पूजा, जानें ये खास वजह

तमाम बिहारवासियों का इंतजार खत्म हो चुका है. छठ गीतों के बीच शुक्रवार को दिवसीय लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत नहाय-खाय से हो गई. आज छठ का दूसरा दिन है. यानी कि आज खरना का दिन है. इस दिन व्रती पूरा दिन व्रत रखने के बाद शाम को गुड़ की खीर का प्रसाद ग्रहण करेंगे और फिर 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा. बता दें कि, इसे बेहद कठिन व्रत माना गया है. अब हम आपको यह भी बता दें कि, आखिर खरना का अर्थ क्या होता है. दरअसल, शास्त्रों में खरना का मतलब शुद्धिकरण बताया गया है. 

खरना वाले दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं, जो मन की शुद्धता के लिए किया जाता है. इस दिन छठी मैया के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है. प्रसाद में शुद्धता का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है. खरना की शाम को गुड़ से बनी खीर का भोग लगाया जाता है. इसमें एक खास बात यह भी है कि, माता का पूरा प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर तैयार किया जाता है. प्रसाद जब बन जाता है तो सबसे पहले व्रती को दिया जाता है, उसके बाद पूरे परिवार प्रसाद का आनंद लेता है. इस दिन भगवान सूर्य की भी पूजा अर्चना की जाती है और व्रती छठी मैया के गीत भी गाते हैं. खरना में खीर के साथ दूध और चावल से तैयार किया गया पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी भी तैयार की जाती हैं. इसके साथ ही छठ का प्रमुख प्रसाद ठेकुआ भी तैयार किया जाता है.

बता दें कि, खरना वाले दिन व्रतधारी मानसिक तौर पर निर्जला उपवास के लिए तैयार होते हैं और इस पूरे व्रत में शुद्धता बहुत महत्वपूर्ण है. आज शाम के समय खीर का प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही व्रती का लगभग 36 घंटे किए जाने वाला निर्जला उपवास शुरू होता है और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन होता है. ऐसी मान्यता है कि, जो लोग छठ माता का व्रत करते हैं और छठ के नियमों का पालन करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं छठी मईया पूरी करती हैं. 

कई बार यह सवाल आपके भी मन में उठता होगा कि, आखिर बंद कमरे में ही खरना की पूजा क्यों की जाती है. इसके लिए भी मान्‍यता है कि, खरना के दौरान छठ व्रती को किसी भी तरह की कोई आवाज ना सुनाई दे या किसी भी तरह की कोई बाधा उत्पन्न ना हो. इस वजह से छठ व्रती शांति और सच्‍ची श्रद्धा से बंद कमरे में खरना करती हैं.

Scan and join

Description of image