बिहार में जातिगत सर्वे पर लगी रोक पटना हाईकोर्ट ने हटा ली है. पटना हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद बिहार सरकार भी एक्टिव मोड में आ गई है. बिहार सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर प्राथमिकता के आधार पर जातिगत सर्वे कराने के लिए कहा है. जातिगत सर्वे को ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद 2024 की लड़ाई पूरी तरह बदल सकती है.
जातिगत सर्वे को ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद वोटों का गणित बदल सकता है. इसके समर्थन और विरोध की सियासत के पीछे यही गणित है. पीएम मोदी के चेहरे के सहारे ओबीसी वोट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की पकड़ मजबूत हुई है. सर्वे से जुड़े आंकड़ों के मुताबिक साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जहां करीब 22 फीसदी ओबीसी वोट मिले थे, वहीं 2019 के चुनाव में ये 44 फीसदी पर पहुंच गया.
ओबीसी वोट पर बीजेपी की मजबूत होती पकड़ का नतीजा ये रहा कि बिहार में लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) जैसी पार्टियां कमजोर होती चली गईं. यूपी में समाजवादी पार्टी (सपा) की जमीन भी कमजोर हुई तो वहीं ओडिशा की सत्ताधारी बीजू जनता दल (बीजेडी) को भी डर सताने लगा है. यही वजह है कि वो सभी पार्टियां जिनका बेस वोटर ओबीसी है, अपने-अपने राज्य में जातिगत जनगणना कराने की मांग कर रही हैं.
जातिगत सर्वे को कमंडल और मंडल की लड़ाई की तरह भी देखा जा रहा है. ओबीसी वोट बैंक में बीजेपी की मजबूत होती पकड़ के बीच 2024 चुनाव से कुछ ही महीने पहले जनवरी के महीने में राम मंदिर का भी उद्घाटन होना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा भी उठा दिया है. ये सब इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि बीजेपी 2024 चुनाव में राम मंदिर निर्माण को अपनी उपलब्धि बताने के साथ ही यूसीसी के मुद्दे पर हिंदू वोट गोलबंद करने की कोशिश करेगी.
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि बीजेपी की कोशिश मतदाताओं को हिंदू अस्मिता पर लाने की होगी. इसे भांपते हुए ही बिहार की सत्ताधारी पार्टियों ने ठीक उसी तरह ओबीसी कार्ड चल दिया है जिस तरह का दांव लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने चला था. वीपी सिंह ने तब मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर दी थी.
बीजेपी ने कठिन माना जाने वाला सामाजिक समीकरण साध नया वोट बैंक खड़ा किया है- हिंदू वोट बैंक.....बीजेपी को कभी ब्राह्मण और बनियों की पार्टी कहा जाता था. लेकिन आज हर जाति-वर्ग में पार्टी मजबूत पैठ बना चुकी है. बिहार की बात करें तो विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन नीतीश कुमार के बिना उतना प्रभावी भले ही न रहा हो लेकिन लोकसभा चुनाव में आंकड़े कुछ और ही हैं.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू के अलग हो जाने के बाद बीजेपी एलजेपी, रालोसपा जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी थी और करीब 30 फीसदी वोट शेयर के साथ 22 सीटें जीती थी. नीतीश कुमार और लालू यादव की अनुभवी जोड़ी ये समझ रही है कि किसी भी विपक्षी पार्टी के पास नरेंद्र मोदी के कद का ओबीसी नेता नहीं है. बीजेपी को हराना है तो पीएम मोदी के चेहरे पर बीजेपी के साथ गोलबंद गैर यादव, गैर कुर्मी ओबीसी वोट बैंक में सेंध लगाना जरूरी है.
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने पटना हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इस सर्वे के जरिए हर जाति के गरीबों की आर्थिक स्थिति सामने आ सकेगी. इसके आधार पर सरकार को योजनाएं बनाने में सहयोग मिलेगा. बिहार सरकार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने हाईकोर्ट के फैसले को नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की जीत बताया है.
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ने हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ये राष्ट्रीय स्तर पर जाति आधारित जनगणना कराने की मांग पर मुहर है. जेडीयू के ही नेता और बिहार सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने हाईकोर्ट के फैसले को नीतीश कुमार सरकार की नीतियों की जीत बताया है. उन्होंने कहा कि ये फैसला गरीबों के पक्ष में है.
क्या है बीजेपी की प्रतिक्रिया....बिहार बीजेपी की ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि हम पटना हाईकोर्ट का फैसला स्वीकार करते हैं. हमने बिहार में जातिगत सर्वे का समर्थन किया था लेकिन सवाल ये है कि प्रदेश में किस तरह से कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधरेगी और भ्रष्टाचार पर इससे किस तरह लगाम लगेगी? यदि सरकार की मंशा सही हो तब रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए और गरीबों के लिए नीतियां बनाई जानी चाहिए. महागठबंधन सरकार की मंशा जातिगत सर्वे के जरिए समाज को बांटने की है.
अब आइए जानते हैं बीजेपी जातिगत सर्वे के विरोध में क्यों है.......जातिगत सर्वे की मांग के पीछे भी रणनीति यही थी कि जातीय अस्मिता को धार दी जाए. जातिगत सर्वे के बाद आरजेडी और जेडीयू इसे कैश कराने की पूरी कोशिश करेंगे. वहीं, बिहार के बाहर सपा, बीजेडी जैसी पार्टियां भी इस मुद्दे को हवा देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगी. आरजेडी बार-बार 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' का नारा भी बुलंद करती रही है. इन दलों की कोशिश अब इसे लेकर बीजेपी के खिलाफ नैरेटिव सेट करने की होगी.
लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने का समय बचा है. ऐसे में बीजेपी नहीं चाहेगी कि तमाम चुनौतियों से जूझते हुए पार्टी को पीएम मोदी के चेहरे पर हर जाति-वर्ग में आधार तैयार करने में जो सफलता मिली है, उसे जाति के नाम पर किसी भी तरह नुकसान पहुंचे. अगर आरजेडी और जेडीयू जैसी पार्टियां ओबीसी वोट पर बीजेपी की पकड़ ढीली करने में सफल रहे तो 2024 चुनाव के लिए बीजेपी की राह मुश्किल हो सकती है.
क्या जातिगत सर्वे से बढ़ेगा नीतीश का कद?.....जातिगत जनगणना की मांग कई पार्टियां कर रही हैं लेकिन जातिगत सर्वे शुरू करने की पहल सबसे पहले बिहार में हुई. इससे नीतीश कुमार का कद राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होगा. बार-बार खेमा बदलने के कारण नीतीश कुमार की इमेज अस्थिर नेता की बन गई थी. ऐसे में, विपक्षी गठबंधन की मुंबई में होने वाली तीसरी बैठक से पहले पटना हाईकोर्ट का जातिगत सर्वे शुरू कराने का ये फैसला नीतीश कुमार के लिए संजीवनी साबित हो सकता है.
नीतीश कुमार खुद भी ओबीसी से ही आते हैं. ऐसे में पूरे आसार हैं कि अब वे जातिगत जनगणना की मांग को लेकर बीजेपी को घेरने की कोशिश करेंगे. गौरतलब है कि जातिगत सर्वे इसी साल जनवरी महीने में शुरू हुआ था. सर्वे का कार्य आधे से अधिक पूरा हो चुका है. बाद में मामला कोर्ट चला गया था. हाईकोर्ट ने सर्वे पर रोक लगा दी थी. सूत्रों की मानें तो सरकार ये सर्वे रिपोर्ट शीतकालीन सत्र के दौरान विधानसभा में पेश कर सकती है.
क्या सर्वे रिपोर्ट बनेगी उम्मीदवार चयन का आधार?.......जानकारों की माने तो जातिगत सर्वे को राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम बताया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के दौर में इस फैसले से पॉलिटिकल टिंडरबॉक्स बढ़ने का खतरा अधिक है. बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए हो या महागठबंधन, दोनों ही तरफ उम्मीदवार चयन के लिए सर्वे रिपोर्ट को आधार बनाएंगे.
बीजेपी पीएम मोदी के चेहरे के सहारे गोलबंद हुए ओबीसी मतदाताओं को अपने साथ जोड़े रखने में सफल रहेगी या विपक्षी पार्टियां अपने मकसद में कामयाब? ये देखने वाली बात होगी.