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क्या 7 साल बाद शराबबंदी कानून वापस लेंगे नीतीश कुमार, जानिए क्या है नफा- नुकसान

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शराबबंदी बिहार में एक बड़ा मुद्दा रहा है. अक्सर इस बात की चर्चा होती है कि शराबबंदी से बिहार को क्या मिला..........क्या फायदा हो रहा और क्या नुकसान हो रहा है. या फिर बिहार किसी और नशे के गर्त में जा रहा है. 

यह चर्चा एकबार फिर से इसलिए शुरू हो गई है क्योंकि नीतीश कुमार ने एक नए सर्वे की बात कह दी है. इस सर्वे में शराबबंदी का जिक्र करने के बाद अब चर्चा इस बात की है कि इस सर्वे के रिपोर्ट आने के बाद क्या नीतीश कुमार यह फैसला ले सकते हैं कि सात साल पहले 1 अप्रैल 2016 को नीतीश कुमार ने पूरे बिहार में शराबबंदी कानून लागू किया था उसे वापस ले लें. 

नीतीश कुमार की बातों में कई पहलू हैं......एक तो नया सर्वे होने वाला है........अब यह सर्वे होगा क्या.........यह सर्वे इस बात की ओर ज्यादा ले जाएगा कि क्या जो बिहार में शराबबंदी कानून लागू किया गया उससे लोगों की आर्थिक स्थिती भी सुधरी या नहीं सुधरी. क्योंकि आप इसे ऐसे भी देखिए कि शराबबंदी लागू होने से बिहार में इस बात की भी बहस थी कि राजस्व का बड़ा नुकसान हुआ है. लेकिन क्या उस राजस्व के नुकसान को सहने के बाद भी अगर बिहार में जो तर्क नीतीश कुमार देते हैं कि शराबबंदी से लोगों के पैसे बचे, क्राइम रेट कम हुआ तो क्या लोगों की आर्थिक स्थिती सुधरी भी है या नहीं. यह भी देखना बड़ा दिलचस्प है.

बिहार में जातीय गणना की तरह शराबबंदी को लेकर भी घर-घर सर्वेक्षण का काम होगा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 26 नवंबर को नशा मुक्ति दिवस के मौके पर इसकी घोषणा की थी. मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद मद्यनिषेध विभाग तैयारी में जुट गया है. यह माना जा रहा है कि 15 दिसंबर के बाद पूरे राज्य में सर्वेक्षण का काम शुरू हो जाएगा. सर्वेक्षण में सरकार इस बात की जानकारी एकत्र करेगी की कितने लोग शराबबंदी के पक्ष में है और कितने लोग पक्ष में नहीं है.

मद्य निषेध विभाग के सूत्रों की माने तो सर्वेक्षण के तौर तरीकों पर काम करने के लिए विभाग और अन्य विभागों से विभिन्न स्तरों पर चर्चा शुरू कर दी गई है. सर्वे में कुछ एजेंसियों को भी शामिल किया जाएगा और इसे जल्द ही अंतिम रूप दिया जाएगा. 15 दिसंबर के बाद सर्वेक्षण शुरू होने की संभावना जताई जा रही है. मधनिषेध विभाग के सूत्रों की माने तो सर्वेक्षण के लिए एक प्रश्नावली तैयार की जा रही है जिससे लोगों की प्रतिक्रिया लेने में आसानी होगी की क्या वह शराबबंदी के समर्थन में है या नहीं है.


हालांकि नीतीश कुमार जब इस बात का जिक्र करते हैं तो वो जोर इस बात का भी देते हैं कि जब तक बिहार में नीतीश कुमार की सरकार रहेगी तब तक शराबबंदी लागू रहेगा. 

लेकिन आपके जेहन में यह सवाल उठता होगा कि आखिर शराबबंदी से बिहार को क्या फायदा पहुंचा...........शराबबंदी को लेकर कई फायदे हैं जो नीतीश कुमार बार-बार गिनाते हैं. 

1. बिहार में महिलाओं के खिलाफ पति या ससुराल के लोगों के हाथों घरेलू हिंसा के मामलों में 37 फीसदी की कमी, राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के मामले 12 फीसदी बढ़े हैं.

2. बिहार में महिलाओं के साथ अपराध की दर में 45 फीसदी की कमी आई है, राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के साथ अपराध की दर में 3 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है.

3. शराब पीने के नुकसान को लेकर जागरूकता बढ़ी है.

4. सार्वजनिक जगहों पर शराब पीकर उत्पात और हुड़दंग के मामले कम हुए हैं.

लेकिन कुछ बड़े नुकसान भी हैं.......शराबबंदी की वजह से बिहार सरकार को बड़ा राजस्व का नुकसान भी हुआ है. अभी तक यह कहा जा रहा है कि लगभग अगर 2015 में सरकार की कमाई  4000 करोड़ थी तो तब से लेकर अभी तक गिने तो यह नुकसान लगभग 35 से 40 हजार करोड़ के आसपास का है.

वहीं मद्द निषेध विभाग पर खर्च बढ़ा है........शराबबंदी लागू कराने के लिए विभाग को करोड़ों खर्च करने पडे़.

बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने की वजह से एक अंडरवर्ल्ड का नेक्सस तैयार हुआ है जिससे यह धंधा लगातार फल फूल रहा है.

शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब के अवैध धंधे से हर साल अनुमानित तौर पर 10 हजार करोड़ का काला धन हर साल पैदा हो रहा है.

शराब की वजह से सड़क दुर्घटना के मामलों को भी जोड़कर देखा जाता है. घोषित तौर पर शराबबंदी के बावजूद बिहार में 2016 में 10, 571 लोगों की मौत हुई थी. लेकिन उसके बाद से सालों में अगर देखा जाए तो 2021 को छोड़ दें तो मौतों की संख्या 2016 से लगातार बढ़ी है. 

बड़े क्राइम भी बिहार में बढ़े हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो एक बार फिर से नीतीश कुमार ने सर्वे का जिक्र कर के इस बात की चर्चा तो छेड़ दी है कि शराबबंदी पर नीतीश कुमार कुछ बड़ा फैसला करेंगे. नीतीश कुमार ने यह साफ कर दिया है कि जबतक बिहार में उनकी सरकार है तब तक शराबबंदी कानून लागू रहेगा. 

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