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समयपूर्व आनंद मोहन की रिहाई सही, याचिका करें खारिज : सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार ने दी दलील

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बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से बाहुबली नेता आनंद मोहन को जेल से समयपूर्व रिहा किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने की मांग की है. पूर्व सांसद आनंद मोहन IAS अधिकारी जी.कृष्णैया हत्याकांड में दोषी हैं, कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बिहार सरकार ने शीर्ष अदालत में कहा है कि कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया की ओर से आनंद मोहन को जेल से रिहा करने के खिलाफ दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, ऐसे में इसे खारिज कर दिया जाए. सरकार ने कहा है कि आनंद मोहन को जेल से रिहा किए जाने में याचिकाकर्ता के किसी अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया. सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता उमा कृष्णैया की याचिका के जवाब में बिहार सरकार ने अपनी तरफ से दाखिल हलफनामे में यह दलील दी है. ये कहा गया है कि राज्य सरकार की तरफ से दोषियों को सजा में छूट देने की नीति से संबंधित मामले में कोई मौलिक अधिकार शामिल नहीं है. 

सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार की दलीलें 


बिहार के जेल महानिरीक्षक एस.कपिल अशोक ने 10 जुलाई को दाखिल हलफनामे में आनंद मोहन को समय से पहले जेल से रिहा करने के अपने फैसले का बचाव किया है. हलफनामे में बिहार सरकार ने कहा है कि पीड़ित या उसके रिश्तेदार को किसी अधिनियम या संवैधानिक प्रावधानों के तहत राज्य द्वारा कैदियों को सजा में छूट देने की नीति में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं दिया गया है. 

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने दोषियों को सजा में छूट देने को विनियमित करने के लिए सजा माफी नीति बनाई है साथ ही कहा है कि यह नीति दोषी सिर्फ दोषी को कुछ लाभ और अधिकार प्रदान करती है और पीड़ित के किसी भी अधिकार को नहीं छीनती है. बिहार सरकार ने यह दलील देते हुए सर्वोच्च न्यायलय को बताया है कि लिहाजा कोई पीड़ित अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दाखिल करने के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का दावा नहीं कर सकता. 

याचिका खारिज करने की मांग 


बिहार सरकार ने अपने हलफनामे में याचिकाकर्ता उमा कृष्णैया पर संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. सरकार ने कहा है कि वास्तव में सजा में छूट का दावा करने वाले दोषी भी अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन के लिए अदालत जाते हैं. नीति में बदलाव करने या दोषी को सजा में छूट देकर जेल से रिहा करने में पीड़िता को उसके किसी भी अधिकार से वंचित नहीं किया गया है. 

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि सभी अधिनियम और अधीनस्थ कानून संवैधानिकता की धारणा के साथ आते हैं और यह किसी अधिनियम को चुनौती देने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह यह साबित करे कि यह(संबंधित कानून) कैसे संवैधानिक दोष से ग्रस्त है ? सरकार ने आगे कहा कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो याचिकाकर्ता यह बताने में पूरी तरह से विफल है कि कैदियों को सजा में छूट देने के लिए कानून/नियम में किए गए बदलाव कैसे संवैधानिक योजना का उल्लंघन करना है. यह दलील देते हुए याचिका खारिज करने की मांग की है. 

लोक सेवकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है सरकार 


बिहार सरकार ने शीर्ष न्यायलय से कहा है कि वह राज्य के सभी लोक सेवकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है. सरकार ने कहा है कि ऐसे व्यक्तियों के लिए निवारक के रूप में कार्य करने के लिए कानून के तहत पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं. सरकार ने कहा है कि कानून में इस तरह के अपराध करने या इसके लिए सोचने वालों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान है. 

सिर्फ आनंद मोहन को नहीं मिला लाभ 


बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सजा में छूट देने के लिए बनाई गई नीति का लाभ सिर्फ आनंद मोहन को नहीं दिया गया है, बल्कि कई अन्य को भी दिया गया है. सरकार ने कहा है कि जब प्रतिवादी संख्या-4 यानी आनंद मोहन को सजा पर छूट देने पर विचार कर रहे थे तो कुल 93 मामले थे. सरकार ने न्यायलय को बताया कि सभी मामलों पर विचार के बाद आनंद मोहन सहित 27 मामलों में सजा में छूट देने को मंजूरी दी गई और 56 को खारिज कर दिया. साथ ही कहा है कि 9 मामलों को दोबारा से संबंधित न्यायाधीश को भेजा गया, जबकि एक मामले को पुनर्विचार के लिए रखा गया था. 

क्या है मामला ? 

बिहार सरकार ने अप्रैल महीने में जेल मैनुअल, 2012 में संशोधन किया था. संशोधित नियमों के तहत सरकार ने 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन DM जी.कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आनंद मोहन को सजा में छूट देते हुए समय से पहले रिहा कर दिया. सरकार के इस फैसले के खिलाफ जी.कृष्णैया की पत्नी उमा देवी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. उन्होंने कहा है कि बिहार राज्य ने विशेष रूप से 10 अप्रैल 2023 के संशोधन के माध्यम से पूर्वव्यापी प्रभाव से बिहार जेल मैनुअल 2012 में इसलिए संशोधन लाया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोषी आनंद मोहन को सजा में छूट का लाभ मिल सके. आनंद मोहन को सहरसा जेल से 27 अप्रैल की सुबह रिहा किया गया था.     

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